वो बुढ़िया जूठन -बर्तन धोनेवाली
झाड़ू-पोंछा लगानेवाली
दुबली-पतली काया पर
उसे विधवा प्रमाणित करती
सफ़ेद धोती लपेटे
इस राह से गुजरा करती थी
ढुलमुलाते क़दमों से
नहीं दिखाई दे रही है
कई दिनों से इधर
न जाने क्यों!
इस उम्र में क्यों ऐसा काम
उसको करना पड़ रहा है ?
इस अवस्था में जब उसे घर पर
नाती-नतनी के साथ चाहिए खेलना
क्या उसका कोई बेटा नहीं
उसे घर में रखकर खिलाने को
क्या कोई बेटी-जमाई नहीं
दो मुट्ठी भात दिलाने को ?
ज़िन्दगी की लड़ाई अकेली लड़ने को मज़बूर
लड़ते-लड़ते थक गई होगी
शायद बीमार पड़ गयी हो
कमज़ोर तो थी ही
शायद और भी कमज़ोर हो गयी हो
पूछा मैंने एक पड़ोसी से
वो बोला, " अरे, वो बुढ़िया नहीं आ रही है
हम भी मुश्किल में हैं उसके चलते
हमारी वाइफ बर्तन धो नहीं सकती। "
नज़दीक के स्वास्थ्य -केंद्र में पूछा
तो पता चला कि वो भर्ती थी चार दिन
उसके बाद चली गई दुनिया से
ऐसी जगह जहाँ उसे जूठन नहीं धोना पड़ेगा
क्योंकि अब उसे खाने की भी
ज़रूरत नहीं है - इसलिए
अब पेट के लिए अपमानित
नहीं होना पडेगा उसे!
Xavier Bage
Sat, Aug 6, 2016