Sunday 31 July 2016

बादलों को आने दो, पृथ्वी प्यासी है



 



















बादलों को   आने  दो, पृथ्वी प्यासी है 
आशीष की बूंदों बिन कितनी उदासी है !

आकाश की ओर ताकते हैं 
पेड़-पौध , खेत, मेड़ 
घास नहीं चारागाह में 
मिमियाती हैं बकरी-भेड़ 
नदी बन गयी नाली , गंदगी की निकासी है 
आशीष की बूंदों बिन कितनी  उदासी है !


मानव के इतिहास में 
आ गया है वह दौर 
पैसा-धतूरा खा-खाकर 
जगत को आया बौर 
इस मर्ज़ की दवा नहीं, धन ही काबा -काशी है 
आशीष की बूंदों बिन कितनी उदासी है !

मन में ही मिलावट है 
जनम के सर मौत का हाथ 
किसी का जीवन चला दो दिन 
किसी को मिले दिन सात 
ताज़ा खिला फूल चमन में, दो पल में बासी है 
आशीष की बूंदों बिन कितनी उदासी है !

Xavier Bage
Mon, Aug 01, 2016

Wednesday 27 July 2016

देख रहा हूँ उसका होते हुए खून !



















मेरे गुरुओं ने , मेरे शिक्षकों ने 
मेरे  दिमाग के श्याम-पट पर 
लिखी थीं बहुत सारी  ज्ञान  की बातें 
बदमाश समय ने पोंछकर 
बना डाले हैं भद्दे कार्टून !

अब जी रहा हूँ उन सीखों को 
बेरहम ज़िंदगी ने जो सिखाई 
मार-पीटकर, लात -धक्के लगाकर 
हर कदम,अगल-बगल, आगे-पीछे 
बचते हुए , समझौता करते हुए 
जुटाना  जो है रोटी दो जून !

अब अपनी नज़र में अपनी ही 
रही-सही इज़्ज़त भी चली गयी 
बहुत मेहनत से, बड़ी सावधानी से,
बचाके   रखा था जो स्वत्व 
लाचारी में देख रहा हूँ उसका होते हुए खून !

ज़ेवियर बेज़ 
Thurs, July 28, 2016

Saturday 23 July 2016

पगली मौत घूमा करती है

















कहीं भी दिख जाते हैं 
खून के धब्बे 
कहीं भी मिल जाती है लाश 
पगली मौत घूमा करती है 
दिमाग में लिए विनाश !

कहीं से आ मार जाती है गोली
कहीं धमाके खेल जाते हैं होली 
न धर्म का न इंसानियत का 
रह गया कोई विश्वास !

ये सभ्य मानव-मन का पतन है 
युगों के संचय का निर्मम दहन है      
"विजयी" खुद को हरा रहे हैं 
हवाओं में बिखेरके संत्रास !

Xavier Bage
Sun, July 24, 2016

Wednesday 20 July 2016

झूल रही है ज़िन्दगी



 












झूल रही है ज़िन्दगी 
पकड़े एक पतली डोर 
न जाने कब दगा दे दे 
बिना मचाए शोर!

दिन के उठते-ढलते 
राहों पे चलते-चलते 
किसी से हुई मुलाक़ात 
नैनों में ला देती लोर !

हर जगह भीड़ ही भीड़ 
दूर है अपना घर-नीड़ 
पहुँच पाएँ भी या नहीं 
काँटे ही काँटे सब ओर !

किस चीज का करें गरूर 
हर तरह से हैं मज़बूर
सोते- जागते किसी वक़्त जान 
चुरा ले सकता है चोर!

Xavier Bage
Tues, 20 July 2016

Wednesday 13 July 2016

वो पगली





















वो पगली बेचारी 
रास्तों पर भटकती हुई 
वो किस्मत  की मारी !

कोई तो शौक से पागल नहीं होता 
पागलपन के पीछे जरूर 
होगी कोई कहानी
जरूर रही होगी  वो 
प्यार करने वाले माँ-बाप की 
गुड़िया बिटिया रानी 

ममतामय हाथों से खानेवाली 
आज चाट रही है जूठन -थारी !              


बस स्टॉप शेड के पीछे 
दुबककर बच जाती है
प्लास्टिक से लिपटकर मौसम की मार 
लेकिन उन कुत्तों से कैसे बचे 
जो किया करते हैं 
नारी-देह का शिकार ?

लज्जा होती है अपने आप पर , आदमी पर 
जो कसमसाता नहीं देख अन्याय भारी !

Xavier Bage
Thurs, 14 July 2016