Wednesday 27 July 2016

देख रहा हूँ उसका होते हुए खून !



















मेरे गुरुओं ने , मेरे शिक्षकों ने 
मेरे  दिमाग के श्याम-पट पर 
लिखी थीं बहुत सारी  ज्ञान  की बातें 
बदमाश समय ने पोंछकर 
बना डाले हैं भद्दे कार्टून !

अब जी रहा हूँ उन सीखों को 
बेरहम ज़िंदगी ने जो सिखाई 
मार-पीटकर, लात -धक्के लगाकर 
हर कदम,अगल-बगल, आगे-पीछे 
बचते हुए , समझौता करते हुए 
जुटाना  जो है रोटी दो जून !

अब अपनी नज़र में अपनी ही 
रही-सही इज़्ज़त भी चली गयी 
बहुत मेहनत से, बड़ी सावधानी से,
बचाके   रखा था जो स्वत्व 
लाचारी में देख रहा हूँ उसका होते हुए खून !

ज़ेवियर बेज़ 
Thurs, July 28, 2016

No comments:

Post a Comment