मेरे गुरुओं ने , मेरे शिक्षकों ने
मेरे दिमाग के श्याम-पट पर
लिखी थीं बहुत सारी ज्ञान की बातें
बदमाश समय ने पोंछकर
बना डाले हैं भद्दे कार्टून !
अब जी रहा हूँ उन सीखों को
बेरहम ज़िंदगी ने जो सिखाई
मार-पीटकर, लात -धक्के लगाकर
हर कदम,अगल-बगल, आगे-पीछे
बचते हुए , समझौता करते हुए
जुटाना जो है रोटी दो जून !
अब अपनी नज़र में अपनी ही
रही-सही इज़्ज़त भी चली गयी
बहुत मेहनत से, बड़ी सावधानी से,
बचाके रखा था जो स्वत्व
लाचारी में देख रहा हूँ उसका होते हुए खून !
ज़ेवियर बेज़
Thurs, July 28, 2016
लाचारी में देख रहा हूँ उसका होते हुए खून !
ज़ेवियर बेज़
Thurs, July 28, 2016
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