Saturday 23 July 2016

पगली मौत घूमा करती है

















कहीं भी दिख जाते हैं 
खून के धब्बे 
कहीं भी मिल जाती है लाश 
पगली मौत घूमा करती है 
दिमाग में लिए विनाश !

कहीं से आ मार जाती है गोली
कहीं धमाके खेल जाते हैं होली 
न धर्म का न इंसानियत का 
रह गया कोई विश्वास !

ये सभ्य मानव-मन का पतन है 
युगों के संचय का निर्मम दहन है      
"विजयी" खुद को हरा रहे हैं 
हवाओं में बिखेरके संत्रास !

Xavier Bage
Sun, July 24, 2016

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