कहीं भी दिख जाते हैं
खून के धब्बे
कहीं भी मिल जाती है लाश
पगली मौत घूमा करती है
दिमाग में लिए विनाश !
कहीं से आ मार जाती है गोली
कहीं धमाके खेल जाते हैं होली
न धर्म का न इंसानियत का
रह गया कोई विश्वास !
ये सभ्य मानव-मन का पतन है
युगों के संचय का निर्मम दहन है
"विजयी" खुद को हरा रहे हैं
हवाओं में बिखेरके संत्रास !
Xavier Bage
Sun, July 24, 2016
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