वो जो युवक मेरे सामने
अस्सी की गति में गया निकल
न जाने कहाँ पहुँचने को
इतना था वो बेताब, विकल !
मैंने कहा ज़रा धीरे जा
अच्छी नहीं है ये रफ़्तार
या तो तुझे चोट लगेगी बेटा
या किसी और को देगा मार
कुछ होने से पहले सम्भल।
कोई दस मिनट बाद मैं
गुजरा सामने वाले बाजार से
अपनी धीमी दुपहिए पर
फुट-फुट करती किनार से
एक छोटी भीड़ मिली चंचल !
एम्बुलेंस एक खड़ी थी वहाँ
लोग उठा रहे थे देह एक
मोटरबाइक पड़ी थी एक ओर
सवार को कहीं न पाया देख
शायद एम्बुलेंस में दिया था चल !
Xavier Bage
Tues, 12 July 2016
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