Thursday 30 June 2016

काश कि एक नदिया गुजरती















काश कि एक नदिया गुजरती 
मेरे छोटे घर के पास 
नन्ही लहरों  से बातें करता 
किनारे बैठकर मैं  बिंदास .

शीतल पवन के हाथ थामे 
पगडंडी पर धीमे पाँव 
टहलता पुटुश पुष्पों के बीच 
कभी रुकता पेड़ों की छाँव .

किसी तने से पीठ लगाकर 
लिखा करता मैं रसीले गीत 
सुख-चैन के इन पलों के 
सरल प्राणों से  करके प्रीत .

काश कि एक नदिया छोटी 
बहती मेरे आवास  के पास 
चिड़ियों से मैं बातें करता 
बिछाना किये नरम-नरम घास .


मेरे अगले जन्म-दिन पर 
नहीं चाहिए मुझे कोई उपहार 
दे देना एक नन्ही सरिता, भगवन
जो बहे मेरे घर के किनार.


Xavier Bage
Thurs, June 30, 2016

Tuesday 28 June 2016

जिस बेहया चीज का नाम है मज़बूरी





















एक मानव से क्या-क्या लेती है करा
एक भलेमानुस को बना देती है बुरा
जिस बेहया चीज का नाम है मज़बूरी !

झुका देती है उसे भी
जिसने झुकना न सीखा
रोक देती है उसे भी
जिसने रुकना न सीखा
एक ईमानदार  आत्मा का
ईमान तक लेती  है चुरा
जिस बेहया चीज का नाम है मजबूरी !

सीधी राहें छोड़ कर उसे
टेढ़ी गलियों में पड़ा चलना
दुखों की आग में तिल -तिल
बार-बार उसे  पड़ा गलना
मार-मार कर बेरहमी से
छोड़ चल देती है अधमरा
जिस बेहया चीज  का नाम है मजबूरी !

कभी कोई अंग बेचकर अपना 
लंगड़ाते हुए पड़ता  है जीना 
ज़िन्दगी जो जहर बनाये  ग़म से 
घूँट-घूँट उसे पड़ता है पीना 
मृत्यु के कठोर आलिंगन में 
जीवन का एक-एक दिन दे झरा 
जिस बेहया चीज का नाम है मजबूरी !





ज़ेवियर बेज़ 
मंगल , जून 28 , 2016  

Saturday 25 June 2016

ओ गिरमिटिया



















कौन माटी कौन परदेश 
कैसी बोली कैसा रे वेश 
ओ  गिरमिटिया, ओ गिरमिटिया
 कहाँ  चल दिया?
 
जानता भी है कितना है दूर ?
काम जो तुझे करेगा मज़बूर ?
अच्छे जीवन की आशा में ,
तूने क्या-क्या किया !

बुलाया करता है तेरा गाँव ,
लौटेंगे क्या कभी तेरे पाँव  ?         
अपने रसीले कूँए छोड़कर 
तूने खारा पानी पिया !

अरब , अफ्रीका और वेस्ट इंडीज ,
पड़े हैं तेरे पसीने के बीज।
क्या नहीं तरसता कभी भी 
स्वदेश के लिए जिया?

Xavier Bage
Sat, June 25, 2016
                                                                            


Wednesday 22 June 2016

बेवक़ूफ़



















ज़िन्दगी में  एक समय  ऐसा भी आता है
जब लगता है सिर्फ मैं हूँ अक़्लमंद
और बाकी सभी हैं बेवक़ूफ़ !
और अपने माँ-बाप ---
वे हैं बेवकूफों में सबसे बड़े !

 जो बातें वे कहते हैं
 वे होती हैं बहुत पुरानी,
जो सीख  वे देते हैं
लगती  हैं किस्से-कहानी।
ज़माना ये मॉडर्न है 
वो ख्यालात हैं सड़े !

हम वही करेंगे जो 
हमें लगता है अच्छा ,
हमें समझ आ गई है 
न समझे कोई बच्चा।
शौक करेंगे मौज करेंगे 
बगल जाओ  जो हो खड़े !

बरसो बीत गए हैं अब 
हमसे हो गई एक भूल,
एक रात हम बाहर थे 
हमारा चूस लिया गया फूल। 
बेवक़ूफ़ वे नहीं थे , हम थे 
अब हम हैं  ग्लानि में पड़े!

ज़ेवियर बेज़ 
Thurs, June 23, 2016

Monday 20 June 2016

आदमी आदमियत खो रहा है



















दिन-ब-दिन ऐसा हो रहा है 
आदमी आदमियत खो रहा है।

कभी पहरा देता था यहीं पर 
कोई बुराई न पनपे ज़मीं पर 
आज खुद ही बुराई के बीज 
बड़े जोश से वहीं  बो रहा है। 

कहीं रक्तिम  लाश गिर गई है 
एक लड़की निसहाय घिर गई है 
जंगली भेड़िये निडर रहे घूम 
बूढ़ा एक खेत में रो रहा है !


चारों तरफ मची है लूट-ही-लूट 
मीडिया  के इश्तहार हैं सब झूठ 
गद्दी हथियाने की है ठेलमठेल 
यमुना तीरे मोहन सो रहा है। 


Xavier Bage
Mon, June 20, 2016
 

Friday 17 June 2016

खुद के लिए जिए तो क्या जिए !



                   







              


                 जी करके देख औरों के लिए ,
                 खुद के लिए जिए तो  क्या जिए !

                मौसम रहते आते -जाते,
                हर दिन एक जैसा कहाँ पाते। 
                मगर दुःख  के वक़्त कँटीले ,
                हमेशा आस-पास  रह जाते। 
                इंसान वही  है सही मायने में,
                जिसने ग़म दूसरों के पिए !

               दो पल बिता ले साथ किसी के ,
               कर ले दिलासे की बात किसी से।
               जला ले कहीं एक छोटा-सा दिया, 
               हटा ले एक टूक रात किसी से। 
               बोल  सके तो बोल  गा सके  गा,  
               ना बैठ तू अधरों  को सिए !

               Xavier Bage
               Fri, June 16, 2016

Tuesday 14 June 2016

एक छोटी किरण हूँ मैं























मैं कुछ न भी कहूँ
तौभी मेरी खामोशी
बहुत कुछ कहती है,
मेरे मन की आवाज
अदृश्य पवन की तरह
इस फिजाँ में बहती है।
   
कुछ लोगों के लिए
मेरा यहाँ होना भी
बहुत खटकता है,
मेरी नीरव चुप्पी से
कोई खुदगर्ज़ काम
कहीं  अटकता है ! 

एक मौके का इन्तज़ार है 
शातिर एक  करके साजिश
चाहेंगे मुझे मिटाना,
नहीं  मालूम है उन्हें 
लेकर मेरी जान भी 
असंभव मुझे हटाना। 

शरीर नहीं हूँ मैं 
एक अमर आत्मा हूँ
इस चमन में स्वाधीन ,
एक छोटी किरण हूँ मैं 
पर बड़े अंधेरे भी 
मेरे समक्ष होते विलीन !


जेवियर बेज़ 
बुध, जून 15 , 2016

 

Saturday 4 June 2016

साईं उतना ही दीजिए
























धनी हो या गरीब 
उच्च हो या नीच 
राजा हो या रंक 
मशहूर हो या  बेनाम 
है कोई ऐसा जिसने जग में 
ना खाया हो दुःख के डंक !

इस संसार के लोग 
यह माना करते हैं 
काटती है बहुत गरीबी 
जब कि पैसेवाले लोग 
मौज- मस्ती  में जीते हैं 
बटोरकर सारी खुशनसीबी !

यह सच लगता है जौभी 
इन भौतिक आँखों को  
इस दुनिया में सब ओर 
दौलत भी लेकर आती है 
मालिकों के लिए अपने
दुखों के सौगात घोर !

इसीलिए ऋषि महात्मा ने 
उच्चारे हैं वचन स्वर्गिक 
ज्ञान-अम्बर में जो सुहाय
साईं उतना ही दीजिए मुझे
समाय जामें मैं और मेरे
और साधु भी न भूखा जाय।


Xavier Bage
Thurs, June 04 , 2016

Wednesday 1 June 2016

गाती रहो , ओ नन्ही चिड़िया

 













गाती रहो , ओ नन्ही चिड़िया
दुनिया में बहुत है ग़म
एक गरीब के दिल में
तुम्हीं  हो खुशी की बूँद
तुम्हारी एक  मधुर तान
पोंछ देती है आँखें नम !

दूर तक जाती हुई राहें
कदम-कदम पर देती हैं आहें
मुस्कानों के पल हैं कम।

तेज़ हवाएँ बुझाती हैं बाती
सुनामी लहरें छुड़ाती हैं साथी
सकून हो जो आंधी जाये थम। 

Xavier Bage
Thurs, June 02, 2016