ज़िन्दगी में एक समय ऐसा भी आता है
जब लगता है सिर्फ मैं हूँ अक़्लमंद
और बाकी सभी हैं बेवक़ूफ़ !
और अपने माँ-बाप ---
वे हैं बेवकूफों में सबसे बड़े !
जो बातें वे कहते हैं
वे होती हैं बहुत पुरानी,
जो सीख वे देते हैं
लगती हैं किस्से-कहानी।
ज़माना ये मॉडर्न है
वो ख्यालात हैं सड़े !
हम वही करेंगे जो
हमें लगता है अच्छा ,
हमें समझ आ गई है
न समझे कोई बच्चा।
शौक करेंगे मौज करेंगे
बगल जाओ जो हो खड़े !
बरसो बीत गए हैं अब
हमसे हो गई एक भूल,
एक रात हम बाहर थे
हमारा चूस लिया गया फूल।
बेवक़ूफ़ वे नहीं थे , हम थे
अब हम हैं ग्लानि में पड़े!
ज़ेवियर बेज़
Thurs, June 23, 2016
No comments:
Post a Comment