Wednesday 22 June 2016

बेवक़ूफ़



















ज़िन्दगी में  एक समय  ऐसा भी आता है
जब लगता है सिर्फ मैं हूँ अक़्लमंद
और बाकी सभी हैं बेवक़ूफ़ !
और अपने माँ-बाप ---
वे हैं बेवकूफों में सबसे बड़े !

 जो बातें वे कहते हैं
 वे होती हैं बहुत पुरानी,
जो सीख  वे देते हैं
लगती  हैं किस्से-कहानी।
ज़माना ये मॉडर्न है 
वो ख्यालात हैं सड़े !

हम वही करेंगे जो 
हमें लगता है अच्छा ,
हमें समझ आ गई है 
न समझे कोई बच्चा।
शौक करेंगे मौज करेंगे 
बगल जाओ  जो हो खड़े !

बरसो बीत गए हैं अब 
हमसे हो गई एक भूल,
एक रात हम बाहर थे 
हमारा चूस लिया गया फूल। 
बेवक़ूफ़ वे नहीं थे , हम थे 
अब हम हैं  ग्लानि में पड़े!

ज़ेवियर बेज़ 
Thurs, June 23, 2016

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