दिन-ब-दिन ऐसा हो रहा है
आदमी आदमियत खो रहा है।
कभी पहरा देता था यहीं पर
कोई बुराई न पनपे ज़मीं पर
आज खुद ही बुराई के बीज
बड़े जोश से वहीं बो रहा है।
कहीं रक्तिम लाश गिर गई है
एक लड़की निसहाय घिर गई है
जंगली भेड़िये निडर रहे घूम
बूढ़ा एक खेत में रो रहा है !
चारों तरफ मची है लूट-ही-लूट
मीडिया के इश्तहार हैं सब झूठ
गद्दी हथियाने की है ठेलमठेल
यमुना तीरे मोहन सो रहा है।
Xavier Bage
Mon, June 20, 2016
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