काश कि एक नदिया गुजरती
मेरे छोटे घर के पास
नन्ही लहरों से बातें करता
किनारे बैठकर मैं बिंदास .
शीतल पवन के हाथ थामे
पगडंडी पर धीमे पाँव
टहलता पुटुश पुष्पों के बीच
कभी रुकता पेड़ों की छाँव .
किसी तने से पीठ लगाकर
लिखा करता मैं रसीले गीत
सुख-चैन के इन पलों के
सरल प्राणों से करके प्रीत .
बहती मेरे आवास के पास
चिड़ियों से मैं बातें करता
बिछाना किये नरम-नरम घास .
बिछाना किये नरम-नरम घास .
मेरे अगले जन्म-दिन पर
नहीं चाहिए मुझे कोई उपहार
दे देना एक नन्ही सरिता, भगवन
जो बहे मेरे घर के किनार.
Xavier Bage
Thurs, June 30, 2016
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