Thursday 30 June 2016

काश कि एक नदिया गुजरती















काश कि एक नदिया गुजरती 
मेरे छोटे घर के पास 
नन्ही लहरों  से बातें करता 
किनारे बैठकर मैं  बिंदास .

शीतल पवन के हाथ थामे 
पगडंडी पर धीमे पाँव 
टहलता पुटुश पुष्पों के बीच 
कभी रुकता पेड़ों की छाँव .

किसी तने से पीठ लगाकर 
लिखा करता मैं रसीले गीत 
सुख-चैन के इन पलों के 
सरल प्राणों से  करके प्रीत .

काश कि एक नदिया छोटी 
बहती मेरे आवास  के पास 
चिड़ियों से मैं बातें करता 
बिछाना किये नरम-नरम घास .


मेरे अगले जन्म-दिन पर 
नहीं चाहिए मुझे कोई उपहार 
दे देना एक नन्ही सरिता, भगवन
जो बहे मेरे घर के किनार.


Xavier Bage
Thurs, June 30, 2016

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