जरा देख के रखिये अपने पाँव
आपके पैरों तले दब सकता है
चींटियों का कोई गाँव !
इस सुन्दर पृथ्वी पर जैसे
मक्खी, मछली , मच्छर
जैसे साँप , मेढक , गोजर
जैसे बाघ , भालू , हाथी
मगरमच्छ , तिमी , हाँगर
गैंडा , लोमड़ी और सियार
वैसे ही हम मानव जाति
हम सब पर है सृजक की छाँव !
इस मनोरम वसुंधरा पर
जैसे नदी , पहाड़ और गुफाएं
पेड़ , पौधे , कन्द मूल लताएं
सूर्य , ग्रह , तारे, किरण, जलराशि
कोनों -कूचों के नागरिक तिलचट्टे
छिपकली, मकड़ी, चूहे
वैसे ही हैं इस धरा के वासी
हम सब सवार एक ही नाव !
ये घर एक उपहार है
हमारे रहने के लिए एक साथ
हम सब का है दिन, सबकी है रात
अपने शहर बसाने के लिए
उनका घरोंदा न उजाड़ देना
न तोड़ देना उनके रास्ते
अपना राजपथ बनाने के लिए
हम सबका यही है ठाँव !
आपका एकाधिकार नहीं इस ग्रह पर
हक़ है आपका इस धरती पर जितना
है हक़ उनका भी इस पर उतना
आप आदमी हैं तो क्या है आज़ादी
उच्छृंखल होकर करने का नाश
ये धरनी नहीं रही तो कहाँ होगा निवास ?
बचना है साथ मरना भी है साथ
सम्हलो जल्दी, हमारा जीवन लगा है दॉँव !
Xavier Bage
Fri, April 29, 2016