ओ गिलहरी
ओ गिलहरी, ओ गिलहरी
तेरी ज़िन्दगी
कितनी आनन्दभरी !
कभी ज़मीन पर, कभी पेड़ पर
कभी खेत में, कभी मेंड़ पर
कभी फुदकती, कभी बदकती
नन्ही, प्यारी, चुलबुली आकाशपरी !
क्या खाती है, क्या पीती है
कितनी खुशी में तू जीती है
कभी उदास न देखा तुझे
धारी वाली छरछराती कोई फूलझरी !
रुपया-पैसा नहीं कोई मकान नहीं
सोना-चांदी नहीं , कोई बगान नहीं
तेरी मस्ती का राज़ क्या है
सच्ची-अच्छी बात बता दे खरी !
ज़ेवियर बेज़
Mon, April 11, 2016
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