Monday 11 April 2016

ओ गिलहरी




















 ओ गिलहरी 

ओ गिलहरी, ओ गिलहरी 
तेरी ज़िन्दगी
कितनी आनन्दभरी !

कभी ज़मीन पर, कभी पेड़ पर 
कभी खेत में, कभी मेंड़ पर 
कभी फुदकती, कभी बदकती 
नन्ही, प्यारी, चुलबुली आकाशपरी !

क्या खाती है, क्या पीती है 
कितनी खुशी में तू जीती है 
कभी उदास न देखा तुझे 
धारी वाली छरछराती कोई फूलझरी !

 रुपया-पैसा नहीं कोई मकान नहीं 
सोना-चांदी नहीं , कोई बगान नहीं 
तेरी मस्ती का राज़ क्या है 
सच्ची-अच्छी  बात बता दे खरी !

ज़ेवियर बेज़ 
Mon, April 11, 2016

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