ओ चाँद , ओ हसीन आसमानी मुसाफिर
तुझसे है मेरा जन्मजात लगाव
मेरा शासक ग्रह है तू
तेरे बिन न चल सकेगी
मेरे जीवन की नाव !
यह तो सभी जानते हैं
पृथ्वी तुझको खींचती है
तेरी मदिर-मधुर चाँदनी
हर प्राण को सींचती है
लेकिन मुझसे है क्यों
तेरे मन का खिंचाव?
दूर से हँसा करता है
कभी न आता है करीब
अपने इस चातक कवि को
क्यों रखा है भूखा ग़रीब ?
चली न जाए यह दुबली जान
सह-सह दुःख के दबाव !
कहते हैं तेरी धरती में
न हरियाली है न पानीहै
न पेड़ों की डाल न पंछी हैं
न नदियों की रवानी है
क्या इसीलिए बेरहमी से
पूनम-अमस जताते प्रभाव ?
ज़ेवियर बेज़
Fri, April 22, 2016
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