अगर मिल जाता इक रोशनी का इशारा
ज़िन्दगी कुछ और ही होती
अगर मिल जाता इक प्यार का सहारा
ज़िन्दगी कुछ और ही होती।
भटकती हुई इक नाव थी
थपेड़ों में लहरों के
अगर दिख जाता इक छोटा सा किनारा
ज़िन्दगी कुछ और होती।
गरीबी के धक्के खा-खा कर
गिर-गिरकर चलते रहे
अगर होता दौलतमन्द घर हमारा
ज़िन्दगी कुछ और ही होती।
आवाज़ों की भीड़ थी चौराहे पर
मन को भरमाने को
अगर मिल जाता सच का प्यारा
ज़िन्दगी और ही होती।
बुझते चले गए किस्मत के दीये
देकर उपहार अँधेरों का
जो होता आकाश में एक सितारा
ज़िन्दगी कुछ और ही होती।
ज़ेवियर बेज़
गुरु, अप्रैल 28 , 2016
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