गर्मी का मौसम आया है, पंखों को नहीं आराम
दिन रात चलते रहना है, करते जाना है काम।
मुंह छुपाए चल रहे हैं, क्या किया है कोई जुर्म?
सूरज फसल बम्पर है, बाज़ार में घट गया दाम।
कोक-ठंडी जितनी लो चूस, लस्सी लोटा ले लो पी
प्यास ज़ालिम ये जाती नहीं, क्या सुबह क्या शाम।
कितनी जानें ले गया यम, कर बहाना गर्मी का
राजनीति का अनियम भी, भेज रहा है बैकुण्ठ धाम।
जाड़े में भी मरते हैं, गर्मी में भी जाते हैं प्राण
गरीबों की किस्मत बनायी, बिना रहम तूने हे राम !
Xavier Bage
Sun, April 17, 2016
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