Thursday 12 May 2016

खुशनसीबी



















तक़दीर बनानेवाले बता देना एक बार 
कैसी होती है अच्छी तक़दीर ?
क्या ये होती है रूपये-पैसे में ?
धन-दौलत मे?
आलीशान मकान में ?
लक्ज़री कार में ?
सोने चाँदी  गहनों में?
कीमती कपड़ों में ?
किन बातों से बनती है 
किस्मत  की जागीर ?

अगर बनती है उन  चीजों से 
तो सचमुच कितना बदनसीब हूँ मैं !
वह सब नहीं है मेरे पास 
एक  टूटी छत भी नहीं अपना कहने को 
जेब में पैसे नहीं मूड़ी खरीदने को 
गहने -गाड़ी के सपने नींद में भी नहीं आते
ज़िंदा हूँ भीख का खाना खाकर 
बदन पे चिथड़ा है 
कहने को चीर !

खुशियों के टुकड़े उठा लेता हूँ 
यहाँ -वहाँ से 
सुबह की एक किरण से
पंछी की एक धुन से 
एक टूक सुख लेकर  हवा के  झोंके से 
सजाया करता हूँ अपनी तक़दीर 
किसी की मुस्कान देख 
किसी की हँसी सुन 
खुशनसीबी बनाया करता हूँ 
इसी तरह दिन गुजर जाता है 
रात आती है तो आसमान में 
टिमटिमाने लगने हैं लाखों तारे 
सबको नज़रों के आगोश में भरकर 
सो जाता हूँ आकाश-गंगा के तीर !


Xavier Bage
Fri, May 13, 2016

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