Monday 30 May 2016

मयखाने के बाहर दो खरगोश

 




















मयखाने  के बाहर दो खरगोश
न कोई फ़िक्र है, न कोई ग़म
ख़ुशी भी दिल में न कोई कम
नाचे जा रहे हैं दो मदहोश !

आकाश में हँस रहा है चाँद
झाड़ियों से आ रहा है संगीत
हजारों कीड़े गा रहे हैं गीत
हमें आज नहीं लौटना है माँद !

दिन गुज़र गया पसीने में
रात की आज़ादी हमारी है
सितारों की बस्ती प्यारी है
ज़िन्दगी का ज़ज़्बा सीने में !

हम बिल्लियाँ नहीं हैं शौकीन
जो गोदियों  में बैठा करती हैं
मालकिन के पैसे ऐंठा करती हैं
हमें महलों की ज़िन्दगी तौहीन !

मयखाने के बाहर दो खरगोश 
बेफिक्री से नाचे जा रहे हैं 
दिल खोल गाए जा रहे हैं 
क्या जरूरी है रखना होश ?



Xavier Bage
Mon, May  30, 2016




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