क्या तुमने कभी चखा है
चुटकी भर नमक से
चटकाया हुआ बासी भात ?
नहीं? यह दोष नहीं है तुम्हारा
यह निष्पाप त्रुटि चलती है
सम्पति के साथ -साथ !
क्या कहने, उस भव्य भोजन के!
देवताओं के दिव्य पान अमृत से भी
रसमय है ज्यादा इसका स्वाद !
रसमय है ज्यादा इसका स्वाद !
अमृत जो प्राप्त हुआ था समुद्र -मंथन से
सुर और असुर मध्य जो बन गया था
वैमनष्य का उन्माद!
शायद भूख से नहीं है परिचय तुम्हारा
उस नारकी आग से जो खाली पेट में
धू-धू कर जलती है
जो गरीब के बदन को छोरों तक जलाती है
धनियों के डाइनिंग टेबल से कोसों दूर
यह टूटती झोपड़ियों में पलती है !
गाँव के किसी दरिद्र बच्चे को
यह दैवी जीवनदायी भोजन
सहज ही मिल जाता है निराला ,
आरामदेह कार में स्कूल जानेवाले बालक के लिए
घृणित पात्र होता है
परसों के बासी भात का निवाला !
Xavier Bage
Sun, May 15, 2016
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