Sunday 15 May 2016

बासी भात का निवाला





















 क्या तुमने कभी चखा है 
चुटकी भर नमक से 
चटकाया हुआ बासी भात ?
नहीं? यह दोष नहीं है तुम्हारा 
यह निष्पाप त्रुटि चलती है 
सम्पति के साथ -साथ !


क्या कहने, उस भव्य भोजन के!
देवताओं के दिव्य पान अमृत से भी
रसमय  है ज्यादा  इसका स्वाद !
अमृत जो प्राप्त हुआ था समुद्र -मंथन से
सुर और असुर  मध्य जो बन गया था 
वैमनष्य का उन्माद!


शायद भूख से नहीं है परिचय तुम्हारा 
उस  नारकी आग  से जो खाली पेट में 
धू-धू कर जलती है 
जो गरीब के बदन को छोरों तक जलाती है 
धनियों के  डाइनिंग टेबल से कोसों दूर 
यह टूटती झोपड़ियों में पलती  है !



गाँव के किसी दरिद्र बच्चे को 
यह दैवी  जीवनदायी भोजन 
 सहज ही मिल जाता है निराला ,
आरामदेह कार में स्कूल जानेवाले बालक के  लिए 
घृणित पात्र होता है
परसों के बासी भात का निवाला !

Xavier Bage
Sun, May 15, 2016

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